मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला;
पहले भोग लगा लूँ तुझको फिर प्रसाद जग पाएगा;
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।1।।
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,
'किस पथ से जाऊँ ?' असमंजस में है वह भोलाभाला;
अलग-अलग पथ बतलाते सब, पर मैं यह बतलाता हूँ -
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।' ।6।।
सुन, कलकल, छलछल मधु - घट से गिरती प्यालों में हाला,
सुन, रुनझुन, रुनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला;
बस आ पहुँचे, दूर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है;
चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।।10।।
एक बरस में एक बार ही जगती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाजी, जलती दीपों की माला;
दुनियावालो, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली, रोज मनाती मधुशाला।।26।।
लाल सुरा की धार लपट-सी कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी है;
पीड़ा में आनन्द जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।।14।।
धर्म-ग्रंथ सब जला चुकी है जिसके अन्तर की ज्वाला,
मंदिर मस्जिद, गिरजे-सबको तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादरियों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।17।।
छोटे-से जीवन में कितना प्यार करूँ पी लूँ हाला,
आने के ही साथ जगत में कहलाया 'जानेवाला'
स्वागत के ही साथ बिदा की होती देखी तैयारी,
बंद लगी होने खुलते ही, मेरी जीवन - मधुशाला।।66।।
- हरिवंशराय बच्चन