‘नासदीय सूक्त’ - ऋग्वेद
सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था।
छिपा था क्या कहाँ, किसने ढका था
उस पल तो अगम, अटल, जल भी कहाँ था
सृष्टि का कौन है कर्ता कर्ता है वा अकर्ता
ऊंचे आकाश में रहता सदा अध्यक्ष बना रहता
वही सचमुच में जानता, या नहीं भी जानता
है किसी को नहीं पता नहीं पता नहीं है पता नहीं है पता
वह था हिरण्यगर्भ सृष्टि से पहले विद्यमान
वही तो सारे भूतजात का स्वामी महान
जो है अस्तित्वमान धरती आसमान धारण कर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर
जिस के बल पर तेजोमय है अम्बर
पृथ्वी हरी भरी स्थापित स्थिर
स्वर्ग और सूरज भी स्थिर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर
गर्भ में अपने अग्नि धारण कर पैदा कर
व्यापा था जल इधर उधर नीचे ऊपर
जगा चुके वो ऐकमेव प्राण बनकर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर
ॐ! सृष्टि निर्माता स्वर्ग रचियता पूर्वज रक्षा कर
सत्य धर्म पालक अतुल जल नियामक रक्षा कर
फैली हैं दिशाएँ बाहू जैसी उसकी सब में सब पर
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर
(रोहित के ब्लौग से उद्घृत)
1 Comments:
नासदीय सूक्त दसवें मण्डल का १२९-वाँ है । आपने १२१ और १२९ सूक्त को मिला कर लिखा है ।
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